देशभर में निजी स्कूलों की बढ़ती फीस से परेशान अभिभावकों के लिए राहत की बड़ी खबर आई है। लंबे समय से चली आ रही इस समस्या को खत्म करने के लिए सरकार ने अब प्राइवेट स्कूल फीस नियंत्रण के नए नियम लागू किए हैं। दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह कानून पहले ही लागू हो चुका है, और अब इसे देशभर में लागू करने की तैयारी चल रही है।
लगातार बढ़ती फीस से परेशान थे माता-पिता
पिछले कुछ वर्षों में कई निजी स्कूलों ने फीस में मनमानी बढ़ोतरी की। ट्यूशन फीस के साथ-साथ बिल्डिंग, एक्टिविटी और अन्य शुल्क के नाम पर अभिभावकों से भारी रकम वसूली जा रही थी। बिना किसी पूर्व अनुमति या जानकारी के फीस बढ़ाने के मामलों से अभिभावकों में नाराज़गी बढ़ती जा रही थी। अब सरकार ने इस मनमानी पर रोक लगाने के लिए कड़ा कदम उठाया है।
सरकार की मंजूरी के बिना नहीं बढ़ेगी फीस
नए नियमों के अनुसार, अब कोई भी निजी स्कूल सरकार की स्वीकृति के बिना फीस नहीं बढ़ा सकेगा। हर स्कूल को फीस बढ़ोतरी का प्रस्ताव कम से कम छह महीने पहले संबंधित समिति के पास भेजना होगा। समिति तीन महीने में फैसला सुनाएगी। अगर किसी स्कूल ने बिना मंजूरी के फीस बढ़ाई, तो अतिरिक्त राशि वापस करनी होगी और भारी जुर्माना भी देना पड़ेगा।
कानून के मुख्य प्रावधान और संरचना
सरकार ने इस व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए “दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण एवं विनियमन में पारदर्शिता) बिल, 2025” लागू किया है। दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में यह नियम पहले से प्रभावी है। राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्री और जिला स्तर पर कलेक्टर समिति की अध्यक्षता करेंगे। बिना समिति की स्वीकृति कोई भी स्कूल फीस नहीं बढ़ा पाएगा। साथ ही, हर स्कूल को फीस संरचना को वेबसाइट पर सार्वजनिक करना होगा ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
अब हर शुल्क का खुला ब्यौरा देना होगा
नए कानून के तहत स्कूलों को अब हर शुल्क जैसे ट्यूशन, बिल्डिंग, यूनिफॉर्म और एक्टिविटी चार्ज का स्पष्ट ब्यौरा देना होगा। स्कूल की वेबसाइट पर सभी शुल्कों की जानकारी सार्वजनिक करना अनिवार्य कर दिया गया है। यदि कोई स्कूल इन नियमों की अनदेखी करता है, तो ₹1 लाख से ₹10 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और स्कूल की मान्यता भी रद्द हो सकती है।
शिकायत और न्याय की प्रक्रिया हुई आसान
अभिभावकों को अब किसी भी गलत शुल्क या अनधिकृत फीस वृद्धि के खिलाफ शिकायत करने का पूरा अधिकार होगा। वे ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकेंगे, और उसका निपटारा तीन महीने के भीतर किया जाएगा। शिक्षा निदेशक को न्यायिक अधिकार दिए गए हैं ताकि शिकायतों पर तुरंत निर्णय लिया जा सके। यह कदम शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही और भरोसे को बढ़ाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
राज्यों में ऐसे लागू हो रहा है नया सिस्टम
दिल्ली में अब सभी 1,700 निजी स्कूल इस कानून के दायरे में आ गए हैं। अभिभावकों को फीस बढ़ोतरी पर “वीटो पावर” दी गई है। छत्तीसगढ़ में राज्य और जिला स्तर पर फीस नियामक समितियाँ बनाई गई हैं। मध्य प्रदेश में ₹25,000 से कम वार्षिक फीस वाले स्कूलों को आंशिक राहत दी गई है, लेकिन उन्हें भी फीस पोर्टल पर जानकारी देना अनिवार्य किया गया है।
अभिभावकों को मिला पारदर्शिता और नियंत्रण का अधिकार
इन नए नियमों के लागू होने के बाद अभिभावकों के अधिकार और भी मजबूत हुए हैं। अब कोई भी स्कूल फीस में मनमानी नहीं कर सकेगा, और सभी अभिभावकों को नई फीस संरचना की जानकारी लिखित रूप में दी जाएगी। यदि कोई स्कूल इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसका लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है और ₹10 लाख तक का दंड भी लगाया जा सकता है।
नए नियमों से होने वाले बड़े फायदे
इस व्यवस्था से शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता, नियंत्रण और समानता बढ़ेगी। अभिभावकों पर आर्थिक बोझ कम होगा, छात्रों की पढ़ाई बीच में रुकने की समस्या घटेगी, और शिक्षा को “व्यवसाय” के बजाय “सेवा” के रूप में देखा जाएगा। साथ ही, सरकारी निगरानी से स्कूलों की कार्यप्रणाली में अनुशासन आएगा।
निष्कर्ष
सरकार का यह कदम शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सुधार माना जा रहा है। अब निजी स्कूलों की फीस प्रणाली पूरी तरह जवाबदेही के दायरे में आएगी। इस नियम से न केवल अभिभावकों को राहत मिलेगी बल्कि शिक्षा में विश्वास और न्याय की भावना भी मजबूत होगी। आने वाले महीनों में उम्मीद है कि यह कानून देश के हर राज्य में लागू होगा और “फीस के नाम पर लूट” जैसी स्थिति पर स्थायी रोक लगेगी।

